वांछित मन्त्र चुनें

यस्मा॒ ऊमा॑सो अ॒मृता॒ अरा॑सत रा॒यस्पोषं॑ च ह॒विषा॑ ददा॒शुषे॑। उ॒क्षन्त्य॑स्मै म॒रुतो॑ हि॒ता इ॑व पु॒रू रजां॑सि॒ पय॑सा मयो॒भुव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasmā ūmāso amṛtā arāsata rāyas poṣaṁ ca haviṣā dadāśuṣe | ukṣanty asmai maruto hitā iva purū rajāṁsi payasā mayobhuvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्मै॑। ऊमा॑सः। अ॒मृताः॑। अरा॑सत। रा॒यः। पोष॑म्। च॒। ह॒विषा॑। द॒दा॒शुषे॑। उ॒क्षन्ति॑। अ॒स्मै॒। म॒रुतः॑। हि॒ताःऽइ॑व। पु॒रु। रजां॑सि। पय॑सा। म॒यः॒ऽभुवः॑ ॥ १.१६६.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:166» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (अमृताः) नाशरहित (ऊमासः) रक्षणादि कर्मवाले आप जैसे (मयोभुवः) सुख की भावना करनेवाले (हिताइव) हित सिद्ध करनेवालों के समान (मरुतः) पवन (अस्मै) इस प्राणी के लिये (पयसा) जल से (पुरु) बहुत (रजांसि) लोकों वा स्थलों को (उक्षन्ति) सींचते हैं वैसे (यस्मै) जिस (ददाशुषे) देनेवाले के लिये (हविषा) विद्यादि देने से (रायः) धर्मयुक्त धन की (पोषम्) पुष्टि को (च) और विद्या को (अरासत) देते हैं वह भी ऐसे ही वर्त्ते ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को वायु के समान सबके सुखों को अच्छे प्रकार विद्या और सत्योपदेश से जल से वृक्षों के समान सींचकर मनुष्यों की वृद्धि करनी चाहिये ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वांसोऽमृता ऊमासो भवन्तो यथा मयोभुवो हिताइव मरुतोऽस्मै पयसा पुरु रजांस्युक्षन्ति तथा यस्मै ददाशुषे हविषा रायस्पोषं विद्याञ्चारासत सोऽप्येवमेवेह वर्त्तेत ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मै) (ऊमासः) रक्षणादिकर्त्तारः (अमृताः) नाशरहिताः (अरासत) रासन्ते (रायः) धर्म्यस्य धनस्य (पोषम्) पुष्टिम् (च) (हविषा) विद्यादिदानेन (ददाशुषे) दात्रे (उक्षन्ति) सिञ्चन्ति (अस्मै) संसाराय (मरुतः) वायवः (हिताइव) यथा हितसंपादकास्तथा (पुरु) पुरूणि बहूनि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। सुपां सुलुगिति शसो लुक्। (रजांसि) (पयसा) जलेन (मयोभुवः) सुखं भावुकाः ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्वायुवत्सर्वेषां सुखानि संसाध्य विद्यासत्योपदेशैर्जलेन वृक्षं सिक्त्वेव मनुष्या वर्द्धनीयाः ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी वायूप्रमाणे सर्वांच्या सुखासाठी चांगल्या प्रकारे विद्या व सत्योपदेश करावा. जलाने वृक्षाला सिंचित केले जाते, त्याप्रमाणे माणसाची वृद्धी केली पाहिजे. ॥ ३ ॥